Mutual Fund Investing

म्यूचुअल फंड क्या है? (What is Mutual Fund in Hindi)

 म्यूचुअल फंड क्या है? बिल्कुल शुरुआत से समझें (पूरी गाइड)

क्या आपने कभी सोचा है कि शेयर बाजार (Stock Market) में पैसा लगाना चाहते हैं, लेकिन समझ नहीं आता कि कहां से शुरुआत करें? या फिर आपके पास हर महीने कुछ बचत होती है, लेकिन वह बैंक में पड़े-पड़े ब्याज (Interest) कमा रही है? अगर हां, तो म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) आपके लिए एक शानदार रास्ता हो सकता है। चलिए, इसे बिल्कुल शुरू से, आसान हिंदी में और सरल तरीके से समझते हैं, जैसे कोई दोस्त आपको समझा रहा हो।

म्यूचुअल फंड क्या है? सबसे सरल परिभाषा (Simple Definition)

सोचिए, आपके गांव या मोहल्ले में कोई बड़ा सामूहिक भोज (पॉटलक – Potluck) होने वाला है। हर व्यक्ति थोड़ा-थोड़ा खाना (जैसे चावल, दाल, सब्जी, रोटी) लाता है। फिर सब मिलकर उस खाने को इकट्ठा करते हैं और एक बड़ा, विविध (Diverse) और भरपूर भोजन तैयार करते हैं जिसका आनंद सभी उठाते हैं।

म्यूचुअल फंड ठीक इसी तरह का एक “निवेश का सामूहिक भोज” है।

  • बहुत सारे लोग (निवेशक – Investors): आप जैसे सैकड़ों, हजारों या लाखों लोग जो निवेश करना चाहते हैं।

  • थोड़ा-थोड़ा पैसा (निवेश राशि – Investment Amount): हर व्यक्ति अपनी सुविधा के हिसाब से पैसा लगाता है (जैसे हर महीने ₹500, ₹1000, या एक बार में ₹10,000)।

  • एक जगह इकट्ठा करना (फंड बनाना – Pooling Money): सबका पैसा एक बड़े “कोष” (Fund) में इकट्ठा हो जाता है।

  • विशेषज्ञ द्वारा पकाना/प्रबंधन (फंड मैनेजर – Fund Manager): इस बड़े पैसे को एक अनुभवी और जानकार शेफ (Fund Manager) को दिया जाता है।

  • विविध व्यंजन तैयार करना (निवेश – Investment): यह शेफ (Fund Manager) इस पूरे पैसे को अलग-अलग जगहों पर निवेश करता है – जैसे कंपनियों के शेयर (Shares/Stocks), सरकारी या कंपनी बॉन्ड (Bonds), या अन्य सुरक्षित जगहें। यानी अंडे एक ही टोकरी में नहीं रखे जाते (डायवर्सिफिकेशन – Diversification)।

  • सबको लाभ का आनंद (मुनाफा/लाभांश – Returns/Dividend): इस निवेश से जो मुनाफा होता है (या कभी-कभी नुकसान भी हो सकता है), वह सभी निवेशकों में उनके द्वारा लगाए गए पैसे के अनुपात में बांटा जाता है।

सीधे शब्दों में: म्यूचुअल फंड एक ऐसा ट्रस्ट (विश्वास) है जो बहुत सारे लोगों से पैसा इकट्ठा करता है, उसे एक पेशेवर फंड मैनेजर (Professional Fund Manager) द्वारा शेयर बाजार, बॉन्ड आदि में निवेश करवाता है, और होने वाले लाभ या हानि को उन सभी निवेशकों में बांटता है जिन्होंने फंड में पैसा लगाया है।

म्यूचुअल फंड का स्ट्रक्चर: पर्दे के पीछे कौन काम करता है? (Structure)

अब सवाल उठता है कि यह सब काम कैसे होता है? कौन लोग इसे मैनेज करते हैं? यह जानना जरूरी है ताकि आप समझ सकें कि आपका पैसा कहां जा रहा है और उसकी देखभाल कौन कर रहा है। म्यूचुअल फंड का ढांचा कुछ इस तरह है:

  1. निवेशक (Investor): यह आप और हम जैसे लोग हैं, जो अपनी बचत का कुछ हिस्सा फंड में लगाते हैं। हम फंड की “यूनिट्स” (Units) खरीदते हैं।

  2. एसेट मैनेजमेंट कंपनी – AMC (Asset Management Company): यह म्यूचुअल फंड का दिमाग और मुख्य संचालक है। AMC फंड की रोजमर्रा की देखभाल करती है। इसके काम में शामिल हैं:

    • विभिन्न प्रकार के म्यूचुअल फंड स्कीम्स (Schemes) बनाना और लॉन्च करना (जैसे इक्विटी फंड, डेट फंड, हाइब्रिड फंड – आगे समझेंगे)।

    • अनुभवी फंड मैनेजर्स (Fund Managers) को नियुक्त करना जो वास्तव में निवेश के फैसले लेते हैं।

    • फंड के प्रदर्शन (Performance) पर नजर रखना।

    • निवेशकों को जानकारी देना और रिपोर्ट्स भेजना।

    • AMC ही फंड के संचालन के लिए फीस (Expense Ratio) लेती है।

  3. ट्रस्टी (Trustee): यह एक स्वतंत्र संस्था होती है जो आप जैसे निवेशकों के हितों की रक्षा करती है। ट्रस्टी यह सुनिश्चित करता है कि AMC सभी नियमों (SEBI के निर्देशों) का पालन कर रही है और निवेशकों का पैसा सही जगह लगा है। ट्रस्टी AMC पर नजर रखता है। सोचिए इसे एक निगरानी समिति (Monitoring Committee) की तरह।

  4. कस्टोडियन (Custodian): यह फंड के पैसे से खरीदे गए शेयरों, बॉन्ड्स आदि संपत्तियों (Securities) का सुरक्षित भंडारण करता है। यह एक बैंक या वित्तीय संस्थान होता है जो यह गारंटी देता है कि आपके फंड की खरीदी गई संपत्तियां सुरक्षित हैं। यह AMC से अलग होता है।

  5. रजिस्ट्रार और ट्रांसफर एजेंट – RTA (Registrar and Transfer Agent): यह निवेशकों के रिकॉर्ड रखता है। जब आप फंड में निवेश करते हैं या निकासी करते हैं, जब आपको लाभांश (Dividend) मिलता है, या आपका स्टेटमेंट (Statement) आता है – यह सब RTA का काम है। CAMS और KFintech प्रमुख RTAs हैं।

यानी, आपका पैसा AMC के पास सीधे नहीं जाता। वह एक ट्रस्ट में रहता है, जिसे ट्रस्टी देखता है, AMC उस पर निवेश करने की सलाह देती है (फंड मैनेजर द्वारा), खरीदी गई संपत्तियां कस्टोडियन के पास सुरक्षित रहती हैं, और आपके खाते का हिसाब RTA रखता है। यह पूरा ढांचा सुरक्षा और पारदर्शिता (Transparency) के लिए बनाया गया है।

म्यूचुअल फंड से जुड़े जरूरी बेसिक टर्म्स (Basic Terms):

  • निवल परिसंपत्ति मूल्य – NAV (Net Asset Value): यह म्यूचुअल फंड की एक यूनिट की कीमत है। जैसे किसी शेयर का मूल्य होता है, वैसे ही फंड की हर यूनिट का एक मूल्य होता है, जिसे NAV कहते हैं।

    • NAV = (फंड की कुल संपत्तियों का मूल्य - फंड के खर्चे) / बकाया यूनिट्स की कुल संख्या

    • NAV हर कारोबारी दिन (Trading Day) के अंत में घोषित होता है। जब आप निवेश करते हैं तो उस दिन के NAV पर आपको यूनिट्स मिलती हैं। जब आप निकालते हैं तो उस दिन के NAV पर आपको पैसा मिलता है।

  • यूनिट (Unit): जब आप म्यूचुअल फंड में पैसा लगाते हैं, तो आपको उस फंड की “यूनिट्स” मिलती हैं। NAV जितना कम होगा, आपकी निवेश राशि से उतनी ज्यादा यूनिट्स मिलेंगी। जैसे-जैसे फंड की संपत्तियों का मूल्य बढ़ता है, NAV बढ़ता है, और आपकी यूनिट्स की कीमत बढ़ जाती है।

  • एक्सपेंस रेश्यो (Expense Ratio): AMC फंड को मैनेज करने, फंड मैनेजर को सैलरी देने, मार्केटिंग करने आदि के लिए एक फीस लेती है। यह फीस फंड की कुल संपत्तियों के प्रतिशत के रूप में होती है, इसे ही एक्सपेंस रेश्यो कहते हैं। यह आमतौर पर 0.5% से 2.5% तक हो सकता है। यह फीस रोजाना NAV से ही काट ली जाती है, आपको अलग से नहीं देनी पड़ती। कम एक्सपेंस रेश्यो आमतौर पर निवेशकों के लिए बेहतर होता है।

  • लाभांश (Dividend): कुछ म्यूचुअल फंड स्कीम्स (डिविडेंड ऑप्शन में) समय-समय पर अपने निवेशकों को लाभ का हिस्सा देती हैं, जिसे लाभांश कहते हैं। ध्यान रखें, लाभांश मिलना गारंटीड नहीं होता और यह आपके मूल निवेश से ही कटता है। अधिकतर विशेषज्ञ दीर्घकालिक निवेश के लिए “ग्रोथ ऑप्शन” (Growth Option) की सलाह देते हैं जहां लाभ फंड में ही पुनर्निवेशित (Reinvested) होता है और चक्रवृद्धि ब्याज (Compounding) का फायदा मिलता है।

  • एंट्री लोड / एक्जिट लोड (Entry Load / Exit Load): ये अतिरिक्त शुल्क होते हैं।

    • एंट्री लोड: फंड में निवेश करते समय लगने वाला शुल्क। भारत में अब ज्यादातर फंड्स पर एंट्री लोड नहीं लगता।

    • एक्जिट लोड: फंड से पैसा निकालते (रिडीम करते) समय लगने वाला शुल्क। यह आमतौर पर तब लगता है जब आप किसी निश्चित अवधि (जैसे निवेश के 1 साल के अंदर) में निकासी करते हैं। इसका उद्देश्य निवेशकों को जल्दबाजी में पैसा निकालने से रोकना है। एक्जिट लोड का प्रतिशत और उसकी लागू होने की अवधि फंड के दस्तावेजों (Scheme Information Document – SID) में स्पष्ट लिखी होती है।

म्यूचुअल फंड के मुख्य प्रकार (Types): आपकी जरूरत के हिसाब से चुनाव 

म्यूचुअल फंड कई तरह के होते हैं, जो अलग-अलग जगहों पर निवेश करते हैं और अलग-अलग जोखिम (Risk) लेते हैं। आपकी वित्तीय जरूरतों, निवेश का लक्ष्य (Goal) और जोखिम लेने की क्षमता (Risk Appetite) के हिसाब से सही फंड चुनना बहुत जरूरी है।

  1. उद्देश्य के आधार पर:

    • इक्विटी फंड (Equity Funds): ये फंड मुख्य रूप से कंपनियों के शेयरों (Stocks) में निवेश करते हैं। इनमें जोखिम (Risk) अधिक होता है लेकिन दीर्घकाल में रिटर्न (Long-Term Returns) भी अधिक होने की संभावना होती है (आमतौर पर 7+ साल के निवेश के लिए)। इनके भी कई उप-प्रकार हैं:

      • लार्ज कैप फंड: बड़ी, स्थिर कंपनियों में निवेश। मध्यम जोखिम।

      • मिड कैप फंड: मध्यम आकार की तेजी से बढ़ने वाली कंपनियों में निवेश। जोखिम लार्ज कैप से ज्यादा।

      • स्मॉल कैप फंड: छोटी कंपनियों में निवेश। सबसे ज्यादा जोखिम, लेकिन सबसे ज्यादा रिटर्न की भी संभावना।

      • फ्लेक्सी कैप फंड: बड़ी, मझोली, छोटी – हर आकार की कंपनियों में निवेश करने की आजादी। विविधता अच्छी।

      • सेक्टरल/थीमैटिक फंड: किसी खास सेक्टर (जैसे IT, बैंकिंग, इंफ्रास्ट्रक्चर) या थीम (जैसे ESG – पर्यावरण अनुकूल कंपनियां) पर फोकस। जोखिम अधिक क्योंकि निवेश एक ही जगह केंद्रित।

      • इलेवन फंड (ELSS – Equity Linked Savings Scheme): इक्विटी फंड का ही एक प्रकार जो आपको टैक्स बचत (Section 80C) का फायदा देता है। इसमें 3 साल की लॉक-इन अवधि होती है।

    • डेट फंड (Debt Funds): ये फंड मुख्य रूप से सरकारी बॉन्ड (Government Bonds), कॉरपोरेट बॉन्ड (Corporate Bonds), फिक्स्ड डिपॉजिट (Fixed Deposits), मुद्रा बाजार के उपकरण (Money Market Instruments) जैसे सुरक्षित जगहों पर निवेश करते हैं। इक्विटी की तुलना में इनमें जोखिम कम होता है और रिटर्न भी आमतौर पर कम लेकिन स्थिर होता है। निकट भविष्य के लक्ष्यों (3-5 साल) या कम जोखिम चाहने वालों के लिए अच्छे।

    • हाइब्रिड फंड (Hybrid Funds): जैसा नाम से पता चलता है, ये फंड इक्विटी (शेयर) और डेट (बॉन्ड) दोनों में निवेश करते हैं। दोनों का अनुपात फंड के उद्देश्य के अनुसार तय होता है। जोखिम और रिटर्न इक्विटी और डेट फंड के बीच में होते हैं। उदाहरण:

      • एग्रेसिव हाइब्रिड (इक्विटी ओरिएंटेड): ज्यादा हिस्सा इक्विटी में (65%+), कम डेट में। ज्यादा जोखिम/रिटर्न।

      • कंजर्वेटिव हाइब्रिड (डेट ओरिएंटेड): ज्यादा हिस्सा डेट में (75%+), कम इक्विटी में। कम जोखिम/रिटर्न।

      • बैलेंस्ड एडवांटेज/डायनामिक एसेट एलोकेशन: फंड मैनेजर बाजार के हालात देखकर इक्विटी और डेट का अनुपात बदलता रहता है।

    • सॉल्यूशन ओरिएंटेड फंड (Solution Oriented Funds): खास लक्ष्यों के लिए बने फंड, जैसे रिटायरमेंट (Retirement Fund) या बच्चों की शिक्षा (Children’s Education Fund)। इनमें भी आमतौर पर 5 साल की लॉक-इन होती है।

    • इंडेक्स फंड / ईटीएफ (Index Funds / ETFs): ये फंड किसी खास इंडेक्स (जैसे Nifty 50, Sensex) की नकल (Track) करते हैं। इनमें फंड मैनेजर का हस्तक्षेप न्यूनतम होता है, इसलिए एक्सपेंस रेश्यो बहुत कम होता है। लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है।

  2. निवेश के तरीके के आधार पर:

    • सक्रिय रूप से प्रबंधित फंड (Actively Managed Funds): इनमें फंड मैनेजर सक्रिय रूप से शोध करके यह चुनने की कोशिश करता है कि किन शेयरों/बॉन्ड में निवेश करना है ताकि बाजार या बेंचमार्क इंडेक्स से बेहतर रिटर्न मिल सके। एक्सपेंस रेश्यो अपेक्षाकृत अधिक होता है।

    • निष्क्रिय रूप से प्रबंधित फंड (Passively Managed Funds – Index Funds/ETFs): ये बस किसी इंडेक्स को कॉपी करते हैं। इनका उद्देश्य इंडेक्स जैसा रिटर्न देना है, उससे बेहतर नहीं। एक्सपेंस रेश्यो बहुत कम होता है।

SIP vs Lumpsum: पैसा लगाने के दो तरीके

म्यूचुअल फंड में निवेश करने के दो मुख्य तरीके हैं:

  1. SIP (सिस्टेमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान – Systematic Investment Plan):

    • क्या है? SIP एक नियमित और अनुशासित तरीका है। इसमें आप हर महीने (या तिमाही/छमाही) एक निश्चित राशि (जैसे ₹500, ₹1000, ₹5000) एक चुने हुए म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं।

    • कैसे काम करता है? हर महीने निर्धारित तारीख को आपके बैंक अकाउंट से राशि कट जाती है और उस दिन के NAV पर फंड की यूनिट्स खरीद ली जाती हैं।

    • फायदे:

      • रुपया लागत में औसतन (Rupee Cost Averaging): यह SIP का सबसे बड़ा जादू है। जब बाजार गिरता है तो आपकी निश्चित राशि से ज्यादा यूनिट्स खरीदी जाती हैं (क्योंकि NAV कम होता है)। जब बाजार चढ़ता है तो कम यूनिट्स खरीदी जाती हैं (क्योंकि NAV ज्यादा होता है)। इससे लंबे समय में आपकी प्रति यूनिट औसत लागत कम हो जाती है और बाजार के उतार-चढ़ाव का असर कम होता है।

      • अनुशासन (Discipline): आप बिना सोचे-समझे हर महीने बचत और निवेश कर पाते हैं।

      • छोटी शुरुआत (Small Beginning): बहुत कम राशि (कुछ फंड्स में ₹100/महीने से भी) से शुरुआत कर सकते हैं।

      • लचीलापन (Flexibility): SIP राशि बढ़ाना, घटाना, रोकना या बदलना आसान है।

      • चक्रवृद्धि ब्याज का फायदा (Compounding Benefit): लंबे समय तक SIP जारी रखने पर छोटी-छोटी रकम भी चक्रवृद्धि ब्याज के जादू से बहुत बड़ी राशि बन सकती है।

    • किसके लिए बेहतर? सैलरी पाने वाले (जिनकी नियमित आय है), शुरुआती निवेशक, बाजार के उतार-चढ़ाव से घबराने वाले, और लंबी अवधि (5 साल से ज्यादा) के लक्ष्य वाले लोगों के लिए SIP आदर्श है।

  2. लम्पसम (Lumpsum):

    • क्या है? इसमें आप एक ही बार में एक बड़ी राशि (जैसे ₹50,000, ₹1 लाख, ₹5 लाख) किसी म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं।

    • कैसे काम करता है? आप जिस दिन निवेश करते हैं, उस दिन के NAV पर आपको यूनिट्स मिलती हैं।

    • फायदे:

      • पूंजी पर तुरंत एक्सपोजर (Immediate Exposure): अगर आपको लगता है कि बाजार अभी कम है और आगे बढ़ेगा, तो आप पूरी राशि एक साथ लगाकर ज्यादा फायदा उठा सकते हैं।

      • सिंगल ट्रांजैक्शन (Single Transaction): सिर्फ एक बार निवेश करना होता है, हर महीने याद रखने की जरूरत नहीं।

    • नुकसान/जोखिम:

      • मार्केट टाइमिंग का जोखिम (Market Timing Risk): अगर आपने बाजार के चरम (Peak) पर निवेश किया और उसके बाद बाजार गिर गया, तो आपका निवेश तुरंत नुकसान में जा सकता है। बाजार का सही समय पकड़ना बेहद मुश्किल होता है।

      • भावनात्मक दबाव (Emotional Pressure): बाजार गिरने पर बड़ी राशि के नुकसान को देखना मुश्किल हो सकता है।

    • किसके लिए बेहतर? जिनके पास एकमुश्त बड़ी राशि उपलब्ध हो (जैसे बोनस, ग्रेच्युटी, विरासत में मिला पैसा), जिन्हें बाजार का अच्छा ज्ञान हो और जोखिम लेने की क्षमता अधिक हो।

 SIP vs Lumpsum: तुलना का सारांश 

विशेषताSIP (सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान)लम्पसम (एकमुश्त निवेश)
निवेश की प्रकृतिनियमित (मासिक/तिमाही आदि) छोटी किश्तेंएक बार में बड़ी राशि
मार्केट टाइमिंगजरूरी नहीं (Rupee Cost Averaging से फायदा)बहुत जरूरी (गलत टाइमिंग पर नुकसान)
जोखिमकम (उतार-चढ़ाव का असर कम)अधिक (बाजार गिरावट पर एकमुश्त नुकसान)
अनुशासनअधिक (स्वचालित नियमित निवेश)कम
शुरुआतबहुत छोटी राशि (₹500/महीना) से भीबड़ी राशि की जरूरत
पूंजी पर एक्सपोजरधीरे-धीरे बढ़ता हैतुरंत पूरा एक्सपोजर
लंबी अवधि में उपयुक्तबहुत उपयुक्त (चक्रवृद्धि का पूरा फायदा)उपयुक्त, लेकिन टाइमिंग महत्वपूर्ण
भावनात्मक दबावकम (छोटी-छोटी किश्तों के नुकसान से कम असर)अधिक (बड़े नुकसान से बड़ा असर)

सलाह: अधिकांश निवेशकों के लिए, विशेषकर शुरुआती लोगों और लंबी अवधि के लक्ष्यों के लिए, SIP को सबसे सुरक्षित, अनुशासित और प्रभावी तरीका माना जाता है। लम्पसम निवेश तभी करें जब आपके पास बड़ी राशि हो और आप बाजार की समझ रखते हों, या फिर SIP की शुरुआत करने के बाद भी कोई बड़ी राशि बची हो तो उसे लम्पसम के रूप में लगा सकते हैं।

निवेश शुरू करने से पहले याद रखें:

  • लक्ष्य तय करें (Define Your Goal): पैसा किस लिए लगा रहे हैं? (रिटायरमेंट, घर, कार, बच्चों की पढ़ाई?)। लक्ष्य के समय के हिसाब से सही फंड चुनें।

  • जोखिम क्षमता समझें (Understand Risk Tolerance): आप मानसिक और वित्तीय रूप से कितना जोखिम ले सकते हैं? अगर बाजार गिरे तो क्या आप घबराकर पैसा नहीं निकाल लेंगे?

  • समय सीमा देखें (Time Horizon): कब तक पैसा निकालना है? अगले 2 साल में जरूरत है तो इक्विटी में न लगाएं। 10 साल बाद जरूरत है तो इक्विटी अच्छा विकल्प हो सकता है।

  • विविधीकरण करें (Diversify): सारा पैसा एक ही फंड या एक ही प्रकार के फंड में न लगाएं। अलग-अलग तरह के फंड्स में निवेश करें।

  • KYC पूरा करें (Complete KYC): म्यूचुअल फंड में निवेश के लिए KYC (Know Your Customer) अनिवार्य है। आधार कार्ड, पैन कार्ड और पते का प्रमाण चाहिए।

  • फंड का ट्रैक रिकॉर्ड देखें (Check Track Record): पिछले कम से कम 5-7 साल का परफॉर्मेंस देखें (केवल पिछले 1 साल का नहीं!), लेकिन याद रखें पिछला प्रदर्शन भविष्य की गारंटी नहीं है।

  • एक्सपेंस रेश्यो पर ध्यान दें (Look at Expense Ratio): एक ही तरह के फंड्स में कम एक्सपेंस रेश्यो वाला फंड चुनने की कोशिश करें।

  • धैर्य रखें (Be Patient): म्यूचुअल फंड, खासकर इक्विटी फंड, लंबी अवधि के लिए बने हैं। कम समय में उतार-चढ़ाव होना सामान्य है। घबराकर पैसा न निकालें।

निष्कर्ष (Conclusion):

म्यूचुअल फंड आम लोगों के लिए शेयर बाजार और अन्य वित्तीय बाजारों में पेशेवर प्रबंधन के तहत निवेश करने का एक सुलभ, सुव्यवस्थित और लाभदायक तरीका है। यह छोटी बचत से भी शुरुआत करने की सुविधा देता है और SIP जैसी सुविधा के जरिए अनुशासित निवेश को बढ़ावा देता है। हालांकि, यह जादू की छड़ी नहीं है। इसमें जोखिम होता है, खासकर इक्विटी फंड्स में। सफलता की कुंजी है – सही लक्ष्य चुनना, अपनी जोखिम क्षमता समझना, सही फंड का चयन करना, SIP के जरिए नियमित निवेश करना और लंबी अवधि तक धैर्य के साथ निवेशित रहना।

शुरुआत छोटी करें, जानकारी जुटाएं, और वित्तीय स्वतंत्रता की ओर कदम बढ़ाएं। म्यूचुअल फंड इस यात्रा में आपका विश्वसनीय साथी बन सकता है।

अगला लेख का विषय: ” म्यूचुअल फंड के प्रकार: किसमें निवेश करें? (इक्विटी, डेट, हाइब्रिड, इंडेक्स, सेक्टर फंड्स की गहराई से समझ)

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